सूरज

आज सुबह उठते ही देखा,
लाल थल सा नभ में.
माँ से पुछा माँ वह क्या है?
जो दिखता है सुलभ से.
माँ ने बोला प्यारे मुन्ना,
वह है शक्ति का भण्डार,
दुखियों का दुःख दूर है करता,
और हरता अन्धकार.
मैं दृढ प्रतिज्ञ हुआ कि अब मैं,
जाऊँगा वहां तक.
शक्ति क़ी इस विपुल राशि की,
परीधि है जहाँ तक.
कास मेरा यह स्वप्न,
जब कभी भी पूरा होगा,
मानवता का वह
चरम सीमा होगा.