सूरज

आज सुबह उठते ही देखा,
लाल थल सा नभ में.
माँ से पुछा माँ वह क्या है?
जो दिखता है सुलभ से.
माँ ने बोला प्यारे मुन्ना,
वह है शक्ति का भण्डार,
दुखियों का दुःख दूर है करता,
और हरता अन्धकार.
मैं दृढ प्रतिज्ञ हुआ कि अब मैं,
जाऊँगा वहां तक.
शक्ति क़ी इस विपुल राशि की,
परीधि है जहाँ तक.
कास मेरा यह स्वप्न,
जब कभी भी पूरा होगा,
मानवता का वह
चरम सीमा होगा.

यह अजब रचा, यह गजब रचा

यह अजब रचा, यह गजब रचा
तुने क्योँ संशार रचा.
अमीर रचा, गरीब रचा
और अनेकों चीज रचा.
पर हम लोगों के भाग्य में क्योँ
दुखों क़ पहार रचा.
यह अजब रचा, यह गजब रचा
तुने क्योँ संशार रचा.

हमने देखा भीर भार मैं,
अमीर गरीब सब एक समान,
पर घर आकर हमने देखा.
हो गए वो दो इंसान.
चैन से फिर बैठ गए वो,
एक दूजे से हो अंजान.
हमने उनके घरों में देखा है,
कोलाहलों क़ शोर मचा.
यह अजब रचा, यह गजब रचा
तुने यह संशार रचा.

तुने जो रचा , सब ठीक रचा,
पर हमने ही अशांति रचा.
में सोच सोच पागल बना,
तुम दोगे हमें इसकी क्या सजा,
यह अजब रचा यह गजब रचा,
तुने सही संशार रचा.

दिव्य भूमि भारत

यह भूमि वही है जहाँ
वीरों ने था जन्म लिया
जहाँ जन्म लेकर रिशियौं ने,
अज्ञानता को ख़त्म किया.
जिसके बल पे जीते हैं
अमेरिका ब्रिटेन और जापान,
जिसके पार्श्व इस्थित हैं
नेपाल श्रीलंका और भूटान.
जिसकी मनोरम छठा देखने,
आते हैं सैलानी,
जिसकी प्रकिर्ती सौंदर्य देखकर,
जलते हैं दुश्प्रानी.
मैं इश दिव्य भूमि को
सत सत नमन करता हूँ,
मुझे गर्व है इस श्वर्ण भूमि पर,
जिसपर मैं रहता हूँ.